मैं और रघुवर मैं मन से मंद और तन से तरुवर चढ़ गया, मैं खुदी में जाने कब कैसे रघुवर बन गया। समझ इतनी की सागर भी गागर में समा लूं, सबल से भरपूर की पत्थर भी पिघला लूं, ईश्वर को दूं चुनौती साहस इतना बढ़ गया, खुद के नशे में चूर मैं कैसे रघुवर बन गया। गलती मेरी कुछ नहीं चाहे कितनी खताएं कर लूं, हो वही हमेशा चाहे कुछ भी मैं हुकुम कर लूं, सबपे बस मेरा चले ऐसा मैं शासक तन गया, बस झूठे सत्ते की लालच में कैसे रघुवर बन गया। जो मैं करूं वो सही है जो ना करूं वो गलत है, मेरी ही किस्मत में जाने क्यूं लिखी गफलत है, चड़ने का हौसला ऐसा की मेरा भी पर लग गया, बस प्रभुत्व का नशा ऐसा हुआ कि रघुवर बन गया। मैं मन से मंद और तन से तरुवर चढ़ गया हूं, बस खुदी में मगरुर हूं कि रघुवर बन गया है। Main aur रघुवर