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उलझा है मन खुद में उलझा है मन खुद में मेरा, कैसे

उलझा है मन खुद में

उलझा है मन खुद में मेरा, 
कैसे अपनी मैं बात कहूँ।
हे शिव जी अब तो कृपा करो, 
तुमसे ही अब मैं आस करूँ।

दुनिया में है ये विष कितना,
बिन पिये मुरझा हम तो रहे।
बाजू में छूरी हैं रखते,
मुख से श्री राम पुकार रहे।

अपराधों की है भीड़ लगी,
ले खंजर अब वे भोंक रहे।
चैनो अमन है कैसे कहें,
वे तो विपदा में झोंक रहे।

अब कैसे हो विश्वास यहांँ,
संशय में जीवन डोल रहा।
जो टूट गये विश्वास यहाँ,
रिश्तों में है जंग बोल रहा।

मानवता को है चोट लगी, 
शैतानी जज़्बे जाग उठे।
संस्कारों की भी बली चढ़ी,
अब देख तमाशा भाग उठे।

उलझा है मन खुद में मेरा, 
कैसे अपनी मैं बात कहूँ।
हे शिव जी अब तो कृपा करो, 
तुमसे ही अब मैं आस करूँ।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
  #उलझा_है_मन_खुद_में #nojotohindi 

उलझा है मन खुद में

उलझा है मन खुद में मेरा, 
कैसे अपनी मैं बात कहूँ।
हे शिव जी अब तो कृपा करो, 
तुमसे ही अब मैं आस करूँ।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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#उलझा_है_मन_खुद_में #nojotohindi उलझा है मन खुद में उलझा है मन खुद में मेरा, कैसे अपनी मैं बात कहूँ। हे शिव जी अब तो कृपा करो, तुमसे ही अब मैं आस करूँ। #Poetry #sandiprohila

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