लम्हा वो एक आया भी सहमा मुस्कुराता, और झकझोर के मन को चला गया फिर से। वो उत्तराखंड वाली चित्र आँखों में अभी तक चल ही रहा था, कि तुमने झकझोर दिया फिर से, ऐसा था कुछ वक़्त, कुछ ऐसा था मौसम। जो हवा तन को ना छू रही थी, वो ऐसी आयी कि मन को हिला दिया फिर से, ऐसा लगा कह रही है, कि सूकून हमें भी तुमने नहीं दिया, इसीलिए,अपनी गति से वक़्त आगे बढ़ाना पड़ा फिर से। मन बावरा अब मेरा भी हुआ हैं, जो ठहरने का नाम भी न लेता, मत कटों पेड़, अब कभी आऊँगी ना फिर से। वो एक आया भी सहमा मुस्कुराता, तो झकझोर के मन को चला गया फिर से, बोलियां भी खामोश कर दी , चुप्पियाँ जैसे यकायक हैं छा गयी। ना हो सका एहसास जो इस बात का की, पास इतने तुम कब आ गयी । बेचैनी की भी वो रात गुज़र जाती , एक नशा मन में चढ़ा हुआ था। देखते ही देखते कुछ ऐसा हुआ कि पूरा का पूरा दृश्य बदल गया फिर से। वो एक आया भी सहमा मुस्कुराता, तो झकझोर के मन को चला गया फिर से। नींद कोसो दूर थी वो गर्मी भी खफ़ा थी, मंथर गति से चाँद छुप रहा था गगन में। और हल्का उजाले में , धुँआ सा कुछ लग रहा था मन में। हद-अनहद से दूर कोसो जा चुकी थी, था नहीं कुछ भी तब दायरे में। बहती हुई तुम डूब गई फ़िर से, और इस तरह सागर नदी से मिल गया फिर से। वो एक आया भी सहमा मुस्कुराता, तो झकझोर के मन को चला गया फिर से।।।। #मौसम की गुहार, महाराष्ट्रा की तबाही,,