रोज़ वो मिलने के सिलसिले बंधी है , यादों की गठरी में, यार अब तलक दिल अटका वो नरेंद्र चाय की टपरी में । इंतज़ार अपने चाय की , करते बड़े , बेसब्री में , यार अब तलक दिल अटका है , वो नरेंद्र चाय की टपरी में । समय वो शाम का , बड़ा याद आता है , वो चाय बहुत ग़ज़ब थी , अभी तक स्वाद आता है । सबसे अच्छी चाय की है वही जगह शिवपुर नगरी में, यार अब तलक दिल अटका है , वो नरेंद्र चाय की टपरी में । सब मिल कर ठहाके लगाते दिल पे बड़ा काबू था, वो नरेंद्र भैया के हाथों में बड़ा कमाल का जादू था । जमाबड़ा दोस्तो का रहता था पुनीत, शुभम की पान की गुमठी में, यार अब तलक दिल अटका है , वो नरेंद्र चाय की टपरी में । honey