गंगा का विस्तृत अंचल आँचल माँ का! माँ तुम बनारस हो हो तो हर दिन चंचल पर्व त्योहारों की चहल-पहल बनारस मस्त है अपनी धुन में मानसून के स्वागत अभ्यागत में कर रहा है धमा-चौकड़ी धूम है गंगा दशहरा की हमारे घर का बनारस चला गया है साथ तुम्हारे घाट पर...जल रहा है शाश्वत तुम होती तो आज पर्व परवान पर होता हर छोटी बड़ी ख़ुशी से गूँजता मन और आँगन... गत-अनागत भीगा देती दाल रात ही चने की...सोंधी मिट्टी की खुशबू, सुगंध त्योहार की भोर ही भोर चल देती लेकर हमें गंगा जी रख देती मिठास के उपमान दो चार लंगड़ा आम गंगा के आँचल में चख लेती बूँदे अमृत की मन पाता किंचित विश्राम और देहरी माथे लगाकर घर में कदम रखते ही हो जाती पतंग सी घर का आसमाँ रंग-रंग जाता जाने तुममें इतना उत्साह कहाँ से था आता #mummy#festivity#life