देर हो गयी!... ये तब कहना था जब एक जीवन गुजर रहा था... आज तो एक दिन- कुछ प्रहर गुजरे थे देर बन, एक नाम पुकारे जाने को, एक विस्मृत को यादों में बुलाने को... उन्हें देश अक्सर देर से पहचानता है, पर वही देश उन्ही की यादों को आक्रामक हो ठानता है! आपको लगता है कि जंग खाया तमंचा, नीब टूटी हुई कलम,आज भी चर्चा का विषय बन बची होगी? पुष्पों से घायल, दबी-कुचली तमन्नाएं उनकी, वर्ष के बाद आज फिर आपकी स्मृति के दीपों में सती होगी! श्रद्धांजलि