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ओस से भींगीं नम हुई नई हरी दूब, कोमल फसलें व नव

ओस से भींगीं नम
 हुई नई हरी दूब, 
कोमल फसलें व
नव यौवन लिए
मंद मुसकाते हुए, 
कुछ पुष्प लताएँ
कोंपलों को समेटे
नए हरे पत्ते और
कलियाँ सकुचाते हुए , 
कल्लोलित खग वृंद 
मधुर प्रस्फुटित स्वर
में गुनगुनाते हुए,
अलसी रही झूम
प्रिय के स्वागत में
अपने हृदय के समस्त 
भाव बिछाते हुए, 
वसुंधरा धर रही
नित बसंती परिधान
 ऋतुराज की राह में
पलकें बिछाते हुए, 
आम्र कुंज से मधु
चुराकर मादक कोकिल
चिहुँक रही जाने कब से 
अपने प्रिय को बुलाते हुए, 
और उतारकर चादरें
धुंध की बसुधा देखो
झुरमुट से झांक रही
मानो देखा है उसने
पीले सरसों के पीछे 
से बसंत को आते हुए। 
                 मन्मंथ् ✍

©Manmanth Das #बसंत #कविता #रचना #मन्मंथ
ओस से भींगीं नम
 हुई नई हरी दूब, 
कोमल फसलें व
नव यौवन लिए
मंद मुसकाते हुए, 
कुछ पुष्प लताएँ
कोंपलों को समेटे
नए हरे पत्ते और
कलियाँ सकुचाते हुए , 
कल्लोलित खग वृंद 
मधुर प्रस्फुटित स्वर
में गुनगुनाते हुए,
अलसी रही झूम
प्रिय के स्वागत में
अपने हृदय के समस्त 
भाव बिछाते हुए, 
वसुंधरा धर रही
नित बसंती परिधान
 ऋतुराज की राह में
पलकें बिछाते हुए, 
आम्र कुंज से मधु
चुराकर मादक कोकिल
चिहुँक रही जाने कब से 
अपने प्रिय को बुलाते हुए, 
और उतारकर चादरें
धुंध की बसुधा देखो
झुरमुट से झांक रही
मानो देखा है उसने
पीले सरसों के पीछे 
से बसंत को आते हुए। 
                 मन्मंथ् ✍

©Manmanth Das #बसंत #कविता #रचना #मन्मंथ
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Manmanth Das

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