ऐ मंजिल के राही तू न विश्राम कर, आ जाए गर मुकाम तेरा फिर भी न आराम कर ! चलता ही रह तूफानों की तरह, इस जग के लिए तो कोई अच्छा काम कर, आ भी जाए अगर तेरे पथ में कोई आंधी, अथक निर्भय चलता रह रे मांझी । तम को चीर उजाले की ओर बढ़, अपने पैरों को तू सफलता की ओर गढ़, हो भी अगर राह में कोई चट्टान, अथक निर्भय चलता रह रे चाहे हो सड़क या श्मशान। ऐ मंजिल के राही तू न विश्राम कर, आ जाए गर मुकाम तेरा फिर भी न आराम कर, चलता ही रह तूफानों की तरह इस जगके लिए तो कोई अच्छा काम कर। ऐ मंजिल के राही तू न विश्राम कर….. होगा तेरा भी इक दिन सवेरा तब तक न कर तू राही कहीं बसेरा, ऐ मंजिल के राही तू न विश्राम कर अथक निर्भय चलता रह न कहीं आराम कर ! निरंतर संघर्षों से तू सीखता चल, आएगा तेरा भी दिन वो पल, रे पथिक तू उस पल का तो इंतजार कर ! ऐ मंजिल के राही तू न विश्राम कर…… ©Thakur Vivek Krishna ए मंजिल के राही....