'ज़िन्दगी' continue... चांदनी छत के मुंढेर तक अब नही आती, जैसे हो गयी हो स्याह रात ज़िन्दगी। अब्र आते हैं, गरजते हैं, चले जाते हैं, कब से हुई नही हैे बरसात ज़िन्दगी। इब्न-ए-आदम हूँ या आदम-ए-खाकी, कौन देगा मुझे जवाब ज़िन्दगी। ढूंढता फिरता था जिसको मैं मन्दिर-मस्जिद, मिल गया मयकदे में वो राज़दार ज़िन्दगी। 'ज़िन्दगी' continue... चांदनी छत के मुंढेर तक अब नही आती, जैसे हो गयी हो स्याह रात ज़िन्दगी। अब्र आते हैं, गरजते हैं, चले जाते हैं, कबसे हुई नही हैे बरसात ज़िन्दगी।