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न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का क़रार ह

न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्ते ग़ुबार हूं

मेरा रंग-रूप बिगड़ गया, मेरा यार मुझसे बिछड़ गया
जो चमन ख़िज़ां से उजड़ गया, मैं उसी की फ़स्ले-बहार हूं

पए फ़ातिहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आके शमा जलाए क्यों, मैं वो बेकसी का मज़ार हूं

मैं नहीं हूं नग़्म-ए-जांफ़ज़ा, मुझे सुन के कोई करेगा क्या
मैं बड़े बिरोग की हूं सदा, मैं बड़े दुखी की पुकार हूं,[1]

बहादुर शाह जफर

©आगाज़
  #नूर  aditi the writer Niaz (Harf) @Mit pAndey