दुनियां का हर पति परेशान रहता है पत्नियों के रोज-रोज के नए नाटक से। पैसा कमाने में लगा रहता है रात दिन, बचाने घर को आर्थिक भूकंप से। रोज ही बताती रहती हैं नई-नई ख्वाहिशें करवाती है पूरी सारी ही फरमाइशें। भरी होती हैं कपड़ों से अलमारियां, फिर भी कहती कम हैं,करती है नुमाइशें। पार्टी में जाने को सजने संवरने की तैयारी में लगाती है न जाने कितने घंटे। मायके जाने को हमेशा तैयार, बनाती हैं बहाने घूमने के रोज नए-नए बाजार। करती सदा मनमर्जियां, कहती आज्ञाकारी हैं, बात-बात में बनती बेचारी हैं। भरी रहती हैं ढेरों लिपस्टिक, पाउडर, क्रीम फिर भी नई-नई डिमांड रहती हैं। आजमाती रोज नए-नए नुस्खे सुंदरता बढ़ाने को हरदम ही परेशान रहती हैं। खाने पीने पर कोई कंट्रोल नहीं रखती किटी पार्टी में रोज ही जाया करती हैं। मेकअप करके सजे सांवरे पार्लर जाएं,रिझाएं निकलवाने को अपने काम। मन की ना हो तो पल में बन जाती दुर्गा, काली, अंत में आते हैं आंसू काम। -"Ek Soch" एक बार कैप्शन अवश्य पढ़ें. #kavyamela #competitionwriting साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता (प्रतियोगिता-5)