*आखरी मुलाकात* दोस्तो मोहहबत शब्द सुनने में जितना हसीन लगता है। उतना ही कठिन है इसे निभा पाना । आज चार साल बीत गए थे मुझे तुम्हारे साथ पर लगता है जैसे कल की है बात है ,अब याद करने जाऊ भी तो याद केवल वह मुलाकात आती है जो आखरी साबित हुई ।कहने को वो मुलाकात थी पर मिलने की जगह बिछड़ने का दस्तूर साथ लाई थी याद आती है तो तुम्हारी वह छवि झुकी नजरें और बहुत मुश्किलों से जुटाई गई हिम्मत के बाद तुम्हारी होठों से निकले वह शब्द *कि अब खत्म करते हैं ना* यह बात आज भी मेरे जेहन में एक ताबूत बनाए हुए हैं कि यह सवाल था या फिर तुम्हारा फैसला मर्जी दोनों की थी क्योंकि *आज इस मोड़ पर हमारा यह रिश्ता धोई हुई उस आसमानी कमीज की तरह था जो साफ तो थी लेकिन उसमें पड़ी सिलवटें उसके पुराने होने का एहसास हर पल दे रही थी* मेरे जाने की वजह तुम्हारे उस वक्त बताने का दिल नहीं किया आज सोचा खुद से ही कह दू शायद तुम ही भी सुन लो कि मेरी खुशियां मुझे तुम तक ले आई और अब तुम्हारी मुझे तुमसे दूर लेकर जा रही हैं हेलो हाय और कैसे हो के बाद ही वो खामोशी इसे तोड़ने की हिम्मत ना हो और ना ही उसमें बहके खामोश रहने की बस इंतजार था तेरे मुंह सेकुछ शब्द निकलने का ताकि मैं भी अपने दिल की बात खुलकर कह सको इतने में तूने बोल ही दिया कि कुछ लाए नहीं मेरे लिए। मेरा सब कुछ तो तू ही थी और तू खुद को ही लेकर जा रही थी इस के बदले में रुखसती की अदायगी मांग रही थी इतने में तुम फिर बोली कि आज तो समय पर आते और मेरा वही पुराना बहाना ऑटो नहीं मिल रहा था वहां पहुंचकर तुमको इतना गौर से देखने के बाद इन आंखों को समझा लिया था कि थे तुम ही हो पर यह दिल तो हकीकत जानता ही था *कि यह तुम वह तुम नहीं जो तुम हुआ करती थी और तुम ये तुम होकर मेरे दिल को सुकून कभी नहीं। से सकती*। वहां उस काफी शॉप के इतने शोर के होने के बावजूद उस शोर को सुनने के बजाय मेरे कानों को तेरी खामोशी सुनाई दे रही थी फिर तुमको इतना गोर से देखने के बाद तुम्हारे सामने मुझे यह समझ आया कि वह लड़के तू कितना आगे बढ़ आया है वह भी इस वक्त जब मेरे मन में उठ रहे सवालों को परे कर हिम्मत जुटा र कर तुझे तेरे सारे सवालों के जवाब दे रहा था इतने में तेरा सवाल आया कि कोई क्या कोई वजह बची है साथ रहने की क्या तुझे सिर्फ तू होने की वजह से प्यार करना काफी नहीं । *सभी पुराने किस्से उठाकर मेरी गलतियों की लिस्ट ले तो आई थी दहेज में पर सुन रिवाज बढ़ाते हुए मैहर में एक लिस्ट मेरी भी कबूल कर*। और बस इल्ज़ामात का सिलसिला शुरू हो गया *" अच्छा चल यह बात बता दे वह निशान भी लेकर जाएगी क्या जो तेरे लैक्मे वाले काजल ने तेरी नाम आंखों के आंसुओ के साथ मिलकर मेरी मेहरून कमीज की सीधी हाथ की बाजू पर लगाया था* क्योंकि वह निशान काफी है मुझे वापस उस दुनिया में ले जाने के लिए जहां से बड़ी हिम्मत जुटाने के बाद भाग पाया हूं आज शब्दों से ज्यादा बातें खामोशियां कर रही थी चलो इसी बहाने जिंदगी भर साथ रहने की एक झूठी चाह मर रही थी *तुम वहां बैठी अपनी आंखों के सामने रखी कॉफी को नमकीन किए जा रही थी ।अरे बुद्धू लड़की अगर इतना ही गम था, तो मुझे छोड़कर क्यों जा रही थी* आज तुम्हें जाने से एक बार भी नहीं रोका क्योंकि आज *मैं रेगिस्तान में पल रहे उस नागफनी की तरह था जिसे बारिश का इंतजार तो रहता है पर उसके ना होने से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता* तभी देर हो रही थी मैं चला चलती हूं का बहाना देख कर तुम उठने लगी सोचा तुम्हें घर तक छोड़ दूं तो जवाब मिला अब किस हाथ में कॉफी शॉप से बाहर निकल कर रूखसती की रस्में अदा कर रही थी कि यह बेरहम मौसम ओर उसकी बेपरवाह बारिश। *बारिश आज भी वही थी बस फर्क इतना था कि हर बार तेरे साथ भीगते थे लेकिन आज तेरे पास भीग रहे हैं* *फिर मिलते हैं का झूठ को लेकर तुम उन कदमों को मुझसे दूर बढ़ा चुकी हो जो कदम तुम शायद बहुत पहले उठा चुकी थी ।* वहां से निकल कर तुम दांए और मैं बाय चल दिया कुछ पल को ठहरा हमारा वक्त अब फिर चल दिया । उस वक्त मन में एक बात रह गई कि *वाह लड़की कितनी आसानी से संसार की रस्मो को जूठला रही हो मेरे हिस्सा का मै तो पहले ही ले जा चुकी थी ,अब मेरे हिस्से की तुम भी लेके जा रहीं हों।* आज कहने को हमेशा की तरह तू मेरे साथ थी पर गम इसी बात का है कि यह हमारी आखिरी मुलाकात थी। to #thestorytellingshow1