१ . अकसर उनको मुझसे नज़्म की गुंजाइश रहती थी ........ मीरा हर अल्फ़ाज़ हर मतला उसी का बखान जो करता था .. २ . अकसर मीरे अंजुमन वो बैठा करती थी..... सायद वो जानती थी ...मीरा हर शेर उन्हीं के सोबत में अर्ज़ होता था ..... खता मेरी भी ना थी ३ . उनकी अदा ही इतनी अजब थी .... आब - ए - आईना भी इक नज़र उन्हीं को तकता ......इतनी स्पष्ट और खता उनकी भी ना थी ४ . अकसर मोहब्बत में इल्म ना रहता बेवफाई का .... वरन् फिदाई खत ना लिखता मेहबूब को इश्क़ का ..... # उर्दू शेर