कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार, रूप कभी है कामिनी,समझो तेज कटार। है लक्ष्मी का रूप वो,काली का अवतार, सहती लोगों के नहीं,खुद पर अत्याचार। नाजुक सीता जानके,कोई आँख दिखाय, उसकी आँखें नोचती,दुर्गा जब बन जाय। कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार, रूप कभी है कामिनी,समझो तेज कटार। है लक्ष्मी का रूप वो,काली का अवतार, सहती लोगों के नहीं,खुद पर अत्याचार। नाजुक सीता जानके,कोई आँख दिखाय, उसकी आँखें नोचती,दुर्गा जब बन जाय।