मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में, तुम्हारे नाम की इक दुकान पड़ती है, विडंबना तो देखो वहा दवाईयां मिला करती है। ज़ाकिर खान ©Anant Nag Chandan मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में, तुम्हारे नाम की इक दुकान पड़ती है, विडंबना तो देखो वहा दवाईयां मिला करती है। ज़ाकिर खान