काला फल वाला (लघु कहानी) मैं पाँच वर्ष की रहीं हूँगी तब। वो दूसरे तीसरे दिन घर आता और हम तीनों को हाथ में कुछ न कुछ फल दे जाता। पापा के क्लीनिक में फलों की टोकरी छोड़ जाता। थोड़ा साँवले रंग का था। सभी उसे काला कह कर बुलाते थे। कई वर्ष बीत गये उसे देखते- देखते। मन में कई सवाल उठते। आजकल कोई किसी को बिना मतलब कुछ नहीं देता। फिर ये क्यों ऐसे ......। उत्सुकतावश एक दिन पापा से पूछा तो पापा की बात कुछ समझ नहीं आई। पापा ने कहा था कि कुछ रिश्ते खून के रंग को भी मात देते हैं। कुछ दिन बाद पापा क्लीनिक पे उस फल वाले से बात कर रहे थे। हम तीनों भाई बहन क्लीनिक पे ही थे। पापा के साथ कहीं जाना था। पापा उसे कुछ पैसे देने लगे उसने लेने से इन्कार कर दिया था। पापा बोले," तुम्हारे भी पैसे लगते हैं, ले लो।" तो उसने कहा, "यहीं गिरा हुआ था आपके क्लीनिक के सामने बेहोश, जब इन बच्चों जितना था।आपने उठा कर मुझे ठीक किया। मैं ज़िन्दा ही नहीं होता। ज़िन्दगी की कीमत पैसों से बढ़ कर नहीं होती। आगे से मुझ से पैसों की बात कभी मत करना आप।" अब तीनों भाई- बहनों को सब समझ आ गया। सच ही कहा था पापा ने। कुछ रिश्ते खून के रंग को भी मात देते हैं। 12/09/2018 #काला #फल #लघुकहानी #उत्सुकतावश #yqdidi #yqhindi