तेरा हमारे लिए बदलना लाजमी था। हम इसे वक्त की गलती नही बताते। क्यू की एक अजीब से घुटन तुझे मेरे साथ होती थी। तेरे दिल का सुकून तेरी आंखों की ठंडक कोई और था। तेरे दिल का सुकू तेरी आंखों की वो ठंडक। कोई और था। जिस में तेरी जान बस्ती थी। हम तो सिर्फ दिल बहलाने का सामन थे। आपकी उसमे और उसमे आपकी जान बस्ती थी। कभी हम भी उस महफिल की शाम हुआ करतें थे। कभी हम भी उस महफिल की शाम हुआ करते थे। जिस को आज किसी और के नाम कर दी। आज उसी महफिल को हमने सरेआम नीलाम कर दी। सरेआम नीलाम कर दी। अफजल चौधरी@ ©Afzal Rana अफजल चौधरी #City दादरी ग्रेटर नोएडा