मन में ख्याल आये .....कलम और कागज भी मिल गये .... फिर क्या था..हम भी अपने अनुभव की... तस्वीर खींचते चले गए...लिख दिया जो मन में था... समाज ने जो दिखाया था... एहसास दिल को कराया था...कि चलोगे गर ना सँभलकर ... तो चोट लगना लाजमी है..सँभालता कोई नहीं.. यहाँ अपने तक ही सीमित आदमी है.. संगदिल है ये जहां..मरहम नहीं दे पायेगा.. गिरते को बढ़कर सँभाले ... ये नहीं इसकी अदा..क्या करें फितरत में इसकी ...कम ही मिलती है वफा..क्या करें फितरत में इसकी..कम ही मिलती है वफा ..!! लेखिका प्रतिभा द्विवेदी उर्फ मुस्कान © सागर मध्यप्रदेश (01नबंवर 2019 ) #kalam #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान©की पूर्णता स्वरचित मौलिक व प्रमाणिक रचना..