वक्त बेवक्त सबको खलने लगा हूं मैं, हां वाकई बिन ठोकरों के ही संभलने लगा हूं मैं..!! आग भट्टी कि अब शीतल लगती है मुझे, हां नंगे पैर अंगारों पे चलने लगा हूं मैं..!! हंसी तले गमों को छुपा लेता हूं मैं, अब अकेले में आंखें मलने लगा हूं मैं..!! वक्त बेवक्त सबको खलने लगा हूं मैं, हां वाकई बिन ठोकरों के ही संभलने लगा हूं मैं..!! आग भट्टी कि अब शीतल लगती है मुझे, हां नंगे पैर अंगारों पे चलने लगा हूं मैं..!! हंसी तले गमों को छुपा लेता हूं मैं, अब अकेले में आंखें मलने लगा हूं मैं..!! – ओम🍂