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68 वें गणतंत्र दिवस पर इतनी सी चाहत... "रोज

68 वें गणतंत्र दिवस पर इतनी सी चाहत...

      "रोज तिरंगा लहराओ"

कितनों की हुई शहादत कितनों ने बलिदान दिया,
कितनों ने भारत माँ को शीश चढ़ा कर मान दिया।
हमने भी क्या खूब किया फक्र अपने शहीदों पर,
गले लगाया है भाईयों को तो बस ईदों पर।
बापू के सपनों को अब टिका दिया बहाने पर,
बाबा साहब की सोच को लगा दिया ठिकाने पर।।
हर आदम को खुद से ही तो यहाँ धिक्कार मिला,
सच में सोचो कितनो को जीने का अधिकार मिला।।
विज्ञान के युग में भी अपना तन्त्र मन्त्र चलता है,
बन्द कमरे से भारत का अपना गणतंत्र चलता है
शहीदों का हर सपना अब तो आखिर सिमट गया,
एक दिन लहराया तिरंगा फिर उतर कर लिपट गया।।
मरते दम तक इन आँखों बस यही अरमान रहे,
नील गगन में रहे तिरंगा जिन्दा हिंदुस्तान रहे।।
वीर भगत की पीड़ा को अपने दिल में फहराओ,
एक दिन क्या जश्न मनाना रोज तिरंगा लहराओ।।
          कवीन्द्र कुण्डु..
68 वें गणतंत्र दिवस पर इतनी सी चाहत...

      "रोज तिरंगा लहराओ"

कितनों की हुई शहादत कितनों ने बलिदान दिया,
कितनों ने भारत माँ को शीश चढ़ा कर मान दिया।
हमने भी क्या खूब किया फक्र अपने शहीदों पर,
गले लगाया है भाईयों को तो बस ईदों पर।
बापू के सपनों को अब टिका दिया बहाने पर,
बाबा साहब की सोच को लगा दिया ठिकाने पर।।
हर आदम को खुद से ही तो यहाँ धिक्कार मिला,
सच में सोचो कितनो को जीने का अधिकार मिला।।
विज्ञान के युग में भी अपना तन्त्र मन्त्र चलता है,
बन्द कमरे से भारत का अपना गणतंत्र चलता है
शहीदों का हर सपना अब तो आखिर सिमट गया,
एक दिन लहराया तिरंगा फिर उतर कर लिपट गया।।
मरते दम तक इन आँखों बस यही अरमान रहे,
नील गगन में रहे तिरंगा जिन्दा हिंदुस्तान रहे।।
वीर भगत की पीड़ा को अपने दिल में फहराओ,
एक दिन क्या जश्न मनाना रोज तिरंगा लहराओ।।
          कवीन्द्र कुण्डु..