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फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है न छूटा गाँव इससे

फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

लड़खडाएंगी सांसे, ये गुमान न था
जाने कैसा ये कुदरत का कहर है।
फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

पिजड़े मे कैद परिंदे के मानिंद हुई जिंदगी
न दिखने वाले ज़रासीमों से भी इतना डर है
फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

उखड़ती सासों से भी सौदा कर रहें है लोग
इंसानी जीवन का ये कैसा मंजर है
फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

©Kamlesh Kandpal
  #jhr