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बीस तक पढ़ले रे पढ़ले की बार- बार रट तीस तक यार दो

बीस तक पढ़ले रे
पढ़ले की बार- बार रट
तीस तक यार दोस्त
लगाते धंधे की लत
चालीस में जाकर
थोड़ा होता नटखट
पचास में बच्चे बड़े
और शुरू खटपट
साठ में सीधी सट
अब मेरी हड्डियां
बोले कट-कट
अब बस पत्नी
ही सुनती है झट
बाकी सबके 
अपने-अपने हठ।।

©Mohan Sardarshahari
  अपने-अपने हठ

अपने-अपने हठ #ज़िन्दगी

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