मुश्किल घड़ी और दोस्त दोस्त अब दोस्ती निभाते नहीं बुझते दीये को अब जलाते नहीं मोबाइल में तो हज़ारो दोस्त है पर बुरे दौर में कोई साथ आते नहीं गरीब के दिल में इंसानियत जिंदा है गरीब का छप्पर कोई उठाते नहीं इस गली से मेरा रिश्ता पुराना है पर मेरा अतीत मुझे बुलाते नहीं बचपन की दोस्ती अब जिंदा कहाँ बड़े होते हीं दोस्त,दोस्ती जताते नहीं दोस्ती तो ख़ुदा की इबादत सी हैं दोस्ती में दोस्त कभी रुलाते नहीं ©prakash Jha दोस्त अब दोस्ती निभाते नहीं बुझते दीये को अब जलाते नहीं मोबाइल में तो हज़ारो दोस्त है पर बुरे दौर में कोई साथ आते नहीं गरीब के दिल में इंसानियत जिंदा है गरीब का छप्पर कोई उठाते नहीं