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मुश्किल घड़ी और दोस्त दोस्त अब दोस्ती निभाते

मुश्किल घड़ी और दोस्त दोस्त   अब   दोस्ती   निभाते  नहीं
बुझते  दीये  को  अब  जलाते नहीं

मोबाइल  में   तो  हज़ारो   दोस्त  है
पर बुरे दौर में कोई  साथ आते नहीं

गरीब के दिल में इंसानियत जिंदा है
गरीब  का  छप्पर  कोई  उठाते नहीं

इस  गली  से  मेरा  रिश्ता  पुराना है
पर  मेरा  अतीत   मुझे  बुलाते  नहीं

बचपन  की दोस्ती  अब  जिंदा कहाँ
बड़े होते हीं दोस्त,दोस्ती जताते नहीं

दोस्ती  तो  ख़ुदा  की  इबादत  सी हैं
दोस्ती  में   दोस्त   कभी रुलाते नहीं

©prakash Jha दोस्त   अब   दोस्ती   निभाते  नहीं
बुझते  दीये  को  अब  जलाते नहीं

मोबाइल  में   तो  हज़ारो   दोस्त  है
पर बुरे दौर में कोई  साथ आते नहीं

गरीब के दिल में इंसानियत जिंदा है
गरीब  का  छप्पर  कोई  उठाते नहीं
मुश्किल घड़ी और दोस्त दोस्त   अब   दोस्ती   निभाते  नहीं
बुझते  दीये  को  अब  जलाते नहीं

मोबाइल  में   तो  हज़ारो   दोस्त  है
पर बुरे दौर में कोई  साथ आते नहीं

गरीब के दिल में इंसानियत जिंदा है
गरीब  का  छप्पर  कोई  उठाते नहीं

इस  गली  से  मेरा  रिश्ता  पुराना है
पर  मेरा  अतीत   मुझे  बुलाते  नहीं

बचपन  की दोस्ती  अब  जिंदा कहाँ
बड़े होते हीं दोस्त,दोस्ती जताते नहीं

दोस्ती  तो  ख़ुदा  की  इबादत  सी हैं
दोस्ती  में   दोस्त   कभी रुलाते नहीं

©prakash Jha दोस्त   अब   दोस्ती   निभाते  नहीं
बुझते  दीये  को  अब  जलाते नहीं

मोबाइल  में   तो  हज़ारो   दोस्त  है
पर बुरे दौर में कोई  साथ आते नहीं

गरीब के दिल में इंसानियत जिंदा है
गरीब  का  छप्पर  कोई  उठाते नहीं
prakashjha2842

prakash Jha

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