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कर्ण जन्म लिया था जब उसने, दर-दर की

             कर्ण

जन्म लिया था जब उसने,
दर-दर की ठोकरें खाई थी।
पैदा हुआ था महलों में,
पर जिन्दगी झोपड़ियों में बिताई थी।
हर दिन सुनता था तानें,
सूतपुत्र कहलाता था।
लिया था प्रण दान का,
दानवीर कहलाया था।
था वो कर्ण अभिषापी,
था वो कर्ण महाप्रतापी,
चला था असाध्य को साध्य करने,
वो परशुराम का शिष्य बन आया था।
मित्र बना वासुदेव का,
जरासंध को भी हराया था।
मित्रता भी निभाई जीवन भर,
बन कर दुर्योधन का हमसाया।।
उसने ललकारा था अर्जुन को,
उसने ललकारा था सभ्य समाज को,
उसने लिया था प्रण,
समानता समाज में लाने का।।
सर्वश्रेष्ठ बन कर उभरा था वो,
नायक वहीं कहलाया था।
वो राधेय नहीं, कौन्तेय था।
वो सूर्यपुत्र कर्ण कहलाया था।।
                       अजेय #ajeyawriting#kavishala
             कर्ण

जन्म लिया था जब उसने,
दर-दर की ठोकरें खाई थी।
पैदा हुआ था महलों में,
पर जिन्दगी झोपड़ियों में बिताई थी।
हर दिन सुनता था तानें,
सूतपुत्र कहलाता था।
लिया था प्रण दान का,
दानवीर कहलाया था।
था वो कर्ण अभिषापी,
था वो कर्ण महाप्रतापी,
चला था असाध्य को साध्य करने,
वो परशुराम का शिष्य बन आया था।
मित्र बना वासुदेव का,
जरासंध को भी हराया था।
मित्रता भी निभाई जीवन भर,
बन कर दुर्योधन का हमसाया।।
उसने ललकारा था अर्जुन को,
उसने ललकारा था सभ्य समाज को,
उसने लिया था प्रण,
समानता समाज में लाने का।।
सर्वश्रेष्ठ बन कर उभरा था वो,
नायक वहीं कहलाया था।
वो राधेय नहीं, कौन्तेय था।
वो सूर्यपुत्र कर्ण कहलाया था।।
                       अजेय #ajeyawriting#kavishala