अपनो के ही द्वारा दिये गये गम केआग में जलती रही मोम की तरह पिघलती रही पिघलके आधी हो चुकी हूँ । अब तो कोई फर्क नहीं पड़ता किसी के जलाने से हम अपने गमो को खुद हथेली पे लिये घुमते हैं। ©Rani Jaiswal #DiyaSalaai