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क्या नशा है तेरी आशिकी में, बिना रम के ही मदहोश बन

क्या नशा है तेरी आशिकी में,
बिना रम के ही मदहोश बना जाती है।
कभी टूटती है कभी बिखेरती है,
   फिर  से  नये  आयाम  में  आ जाती  है।।
क्या नशा है तेरी आशिकी में, 
बिना रम के ही मदहोश बना जाती है।। Without Love we can't do anything....
क्या नशा है तेरी आशिकी में,
बिना रम के ही मदहोश बना जाती है।
कभी टूटती है कभी बिखेरती है,
   फिर  से  नये  आयाम  में  आ जाती  है।।
क्या नशा है तेरी आशिकी में, 
बिना रम के ही मदहोश बना जाती है।। Without Love we can't do anything....
kundanspoetry7099

KUNDAN KUNJ

Bronze Star
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