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#Depression #important #Sushant Singh कुछ बातें बह

#Depression #important #Sushant Singh कुछ बातें बहुत ज़रूरी होती हैं, पर, उन पर लोग बात करना नहीं पसंद करते।पर,आज मुझे लग रहा, ज़िंदगी से कीमती कोई चीज़ नहीं, मुझे आज अपने डिप्रेशन के अनुभव आप सबों के साथ शेयर करना चाहिए, शायद कोई एक जान भी बच जाए। मुझे याद है, मैं शुरू से बहुत हंसमुख,मजाकिया पर मेहनती और पढ़ने में औसत से अच्छा लड़का रहा हूं। मेरे साथी मुझे क्रिएटिव माइंड,एंटरप्रेन्योर,मेहनती, रिस्क टेकर, मोटिवेशनल स्पीकर,काउंसलर,कॉमेडियन और पता नहीं कितने अलंकारों से नवाजा करते हैं। बात 2014 की है B.Tech करने के बाद यूपीएससी के लिए कॉलेज हॉस्टल से अचानक दिल्ली शिफ्ट होने के बाद; मेरा स्वास्थ्य और शिक्षा का अचानक से स्तर गिरने पर,मुझे insomania की समस्या हुई। बहुत ज्यादा मैं सोचने लगा,over thinking के वजह से नींद दो दो घंटे में खुलना और हर बार एक ही सवाल अब क्या होगा?General Physician ने ब्लड टेस्ट किया और बोला प्लेटलेट्स कम हैं, लिक्वड डायट लो, रोड पर चलते हुए मुझे लगने लगा था, मैं टेढ़ा चल रहा, मुझे कोई पीछे से धक्का मार देगा, आवाज़ से डर जाता था। नींद नहीं आने से कमज़ोरी, चिड़चिड़ापन किसी काम में मन नहीं लगना और सबसे बड़ी बात मुझे समझ ही नहीं आ रहा था, मुझे हुआ क्या है? भारत में डिप्रेशन के बारे में बहुत भ्रांतियां हैं और मानसिक बीमारी के बारे में खुलकर कोई बात करने को तैयार नहीं। अपने होमटाउन गया में मशहूर मनोचिकित्सक से जब मैंने समस्या बताई उसने मुझे दवा लिख दिया, बिना कुछ ज्यादा पूछे या जांच किए, दूर से ही सारा दवा लिख दिया। जब मैंने पूछा, मुझे कौन सी बीमारी है, उसने बोला डिप्रेशन, मैं हैरान था, मेरे जैसा विनोदी लड़का और डिप्रेशन? मुझे किस चीज़ की कमी थी, जो मैं डिप्रेशन में हूं, इस सवाल का जवाब दुंढने लगा। डॉक्टर द्वारा की दवा के अत्यधिक डोज से मैं 16-17 घंटा सोने लगा, मैं वापस डॉक्टर से बोला ऐसे तो मैं और डिप्रेशन में हो जाऊंगा जब पढ़ या कोई काम नहीं कर, पूरे दिन सोता रहूंगा। उसने दवा कम कर दी पर कोई काउंसलिंग नहीं की, ना मुझे ख़ुद कुछ अता पता था, बहुत सारे दोस्तों को, डॉक्टर को फोन किया पर सब व्यर्थ, कोई सलाह मेरे मस्तिष्क को सुकून दे, ऐसा नहीं हो सका। साईकल चलाना, बाइक उड़ाना, खाना बनाना मेरा फेवरेट काम हुआ करता था, पर उन कामों में भी मन नहीं लगता था। किसी से बात करने का, मिलने का दिल नहीं करता था। बंद कमरे में अकेले गुमसुम रहता था, रोता रहता था। मेरी हालत देख मेरी माता चुपके चुपके अलग कमरे में रोती थी। गांव में लोगों को, परिवारों को लगने लगा था, मैं नौकरी नहीं लगने के वजह से नौटंकी कर रहा, जबकि सच्चाई ये थी कि मैंने कभी नौकरी तलाशी ही नहीं। जब डॉक्टर काम ना आया तो, मैं और मेरे पिता अंधविश्वास के ख़िलाफ़ होने के वावजूद मौलवी,मंदिर,मजार,पुजारी, मंत्र- तंत्र, भूत, ओझा सब किया।पर, सब व्यर्थ, दिल्ली आने से मुझे डर लगने लगा था, मैं बिल्कुल आना नहीं चाहता था, पिता मेरे कभी परेशान, कभी हैरान, कभी क्रोध में डांटते थे कि ऐसा क्या हाल बना बैठा है?कई बार जी करता था, मौत बेहतर है, एक दो बार मैंने जहर की तलाश की एक बार तो पेस्टीसाइड की बोतल खोल, पीने की सोच ही रहा था कि कोई कमरे में आ गया। फिर एक और नामी डॉक्टर के पास गया, उन्होंने कहा, डिप्रेशन है, मैंने कहा मेरे जैसा लड़का को डिप्रेशन कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा महत्वाकांक्षी लोगों को, और अच्छे दिमाग़ वालों को ही होता है ये। मुझे नींद की समस्या अभी भी थी, धड़कन की आवाज़ साफ सुनाई देती थी, जिसे palpitation कहा जाता है। वापस हिम्मत जुटा दिल्ली आया दवा लेकर पर ये समस्या पीछा छोड़ ही नहीं रही थी, कोचिंग क्लास तक मैं पूरी नहीं कर पाया। सबसे बड़ी बात उस समय जरूरत होती है एक साथी की जो सब सुने, जज ना करे, सलाह ना दे, बस साथ दे, विश्वास करे पर कोई साथ नहीं देता, ये जंग ख़ुद से खुद लड़ने की है। और इसमें कोई सलाह काम नहीं देता। मैंने गीता पढ़ी, कुरान पढा, आध्यात्मिक कई किताबें पढ़ी, ध्यान किया। अंत में विपश्यना गया, वहां जाकर बहुत सुकून मिला, फिर धीरे धीरे ख़ुद को व्यस्त रखने लगा, ये नहीं सोचता कि क्या कर रहा हूं बस एक ही इसका उपाय है बिना सोचे ख़ुद को व्यस्त रखना, जो करो सार्थक, निरर्थक उससे फर्क नहीं पड़ता, बस ख़ुद को व्यस्त रखो, अच्छे डॉक्टर से मिलो, काउंसलिंग कराओ, एक ऐसा शख़्स ज़रूर हो, जिससे दिल खोल कर बातें हों,अपनों से भरपूर प्यार मिले तो ये जंग आराम से जीती जा सकती है। वरना मानसिक रोग से भयंकर कुछ नहीं। मेरे माता पिता ने मेरा साथ नहीं दिया होता, तो, शायद आज मैं लिखने को जिंदा नहीं होता। खुल कर कहिए, आप डिप्रेशन में हैं, निसंकोच क्योंकि ये प्राकृतिक है, और इस बीमारी में ख़ुद पर से ख़ुद का भरोसा उठ जाता है, ज़िंदगी बोझिल लगने लगती है। दुनिया,परिवार इन सब का का मोह ख़त्म हो जाता है।
ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है,एक बार अगर आप डिप्रेशन से निकल गए,फिर,ज़िंदगी की कोई दिक्कत को आराम से झेल लीजिएगा।ज्ञान देना बहुत आसान है,फिल्मों में सुशांत सिंह ने भी दिया है, पर उसे जीवन में उतारना उतना ही कठिन।
#Depression #important #Sushant Singh कुछ बातें बहुत ज़रूरी होती हैं, पर, उन पर लोग बात करना नहीं पसंद करते।पर,आज मुझे लग रहा, ज़िंदगी से कीमती कोई चीज़ नहीं, मुझे आज अपने डिप्रेशन के अनुभव आप सबों के साथ शेयर करना चाहिए, शायद कोई एक जान भी बच जाए। मुझे याद है, मैं शुरू से बहुत हंसमुख,मजाकिया पर मेहनती और पढ़ने में औसत से अच्छा लड़का रहा हूं। मेरे साथी मुझे क्रिएटिव माइंड,एंटरप्रेन्योर,मेहनती, रिस्क टेकर, मोटिवेशनल स्पीकर,काउंसलर,कॉमेडियन और पता नहीं कितने अलंकारों से नवाजा करते हैं। बात 2014 की है B.Tech करने के बाद यूपीएससी के लिए कॉलेज हॉस्टल से अचानक दिल्ली शिफ्ट होने के बाद; मेरा स्वास्थ्य और शिक्षा का अचानक से स्तर गिरने पर,मुझे insomania की समस्या हुई। बहुत ज्यादा मैं सोचने लगा,over thinking के वजह से नींद दो दो घंटे में खुलना और हर बार एक ही सवाल अब क्या होगा?General Physician ने ब्लड टेस्ट किया और बोला प्लेटलेट्स कम हैं, लिक्वड डायट लो, रोड पर चलते हुए मुझे लगने लगा था, मैं टेढ़ा चल रहा, मुझे कोई पीछे से धक्का मार देगा, आवाज़ से डर जाता था। नींद नहीं आने से कमज़ोरी, चिड़चिड़ापन किसी काम में मन नहीं लगना और सबसे बड़ी बात मुझे समझ ही नहीं आ रहा था, मुझे हुआ क्या है? भारत में डिप्रेशन के बारे में बहुत भ्रांतियां हैं और मानसिक बीमारी के बारे में खुलकर कोई बात करने को तैयार नहीं। अपने होमटाउन गया में मशहूर मनोचिकित्सक से जब मैंने समस्या बताई उसने मुझे दवा लिख दिया, बिना कुछ ज्यादा पूछे या जांच किए, दूर से ही सारा दवा लिख दिया। जब मैंने पूछा, मुझे कौन सी बीमारी है, उसने बोला डिप्रेशन, मैं हैरान था, मेरे जैसा विनोदी लड़का और डिप्रेशन? मुझे किस चीज़ की कमी थी, जो मैं डिप्रेशन में हूं, इस सवाल का जवाब दुंढने लगा। डॉक्टर द्वारा की दवा के अत्यधिक डोज से मैं 16-17 घंटा सोने लगा, मैं वापस डॉक्टर से बोला ऐसे तो मैं और डिप्रेशन में हो जाऊंगा जब पढ़ या कोई काम नहीं कर, पूरे दिन सोता रहूंगा। उसने दवा कम कर दी पर कोई काउंसलिंग नहीं की, ना मुझे ख़ुद कुछ अता पता था, बहुत सारे दोस्तों को, डॉक्टर को फोन किया पर सब व्यर्थ, कोई सलाह मेरे मस्तिष्क को सुकून दे, ऐसा नहीं हो सका। साईकल चलाना, बाइक उड़ाना, खाना बनाना मेरा फेवरेट काम हुआ करता था, पर उन कामों में भी मन नहीं लगता था। किसी से बात करने का, मिलने का दिल नहीं करता था। बंद कमरे में अकेले गुमसुम रहता था, रोता रहता था। मेरी हालत देख मेरी माता चुपके चुपके अलग कमरे में रोती थी। गांव में लोगों को, परिवारों को लगने लगा था, मैं नौकरी नहीं लगने के वजह से नौटंकी कर रहा, जबकि सच्चाई ये थी कि मैंने कभी नौकरी तलाशी ही नहीं। जब डॉक्टर काम ना आया तो, मैं और मेरे पिता अंधविश्वास के ख़िलाफ़ होने के वावजूद मौलवी,मंदिर,मजार,पुजारी, मंत्र- तंत्र, भूत, ओझा सब किया।पर, सब व्यर्थ, दिल्ली आने से मुझे डर लगने लगा था, मैं बिल्कुल आना नहीं चाहता था, पिता मेरे कभी परेशान, कभी हैरान, कभी क्रोध में डांटते थे कि ऐसा क्या हाल बना बैठा है?कई बार जी करता था, मौत बेहतर है, एक दो बार मैंने जहर की तलाश की एक बार तो पेस्टीसाइड की बोतल खोल, पीने की सोच ही रहा था कि कोई कमरे में आ गया। फिर एक और नामी डॉक्टर के पास गया, उन्होंने कहा, डिप्रेशन है, मैंने कहा मेरे जैसा लड़का को डिप्रेशन कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा महत्वाकांक्षी लोगों को, और अच्छे दिमाग़ वालों को ही होता है ये। मुझे नींद की समस्या अभी भी थी, धड़कन की आवाज़ साफ सुनाई देती थी, जिसे palpitation कहा जाता है। वापस हिम्मत जुटा दिल्ली आया दवा लेकर पर ये समस्या पीछा छोड़ ही नहीं रही थी, कोचिंग क्लास तक मैं पूरी नहीं कर पाया। सबसे बड़ी बात उस समय जरूरत होती है एक साथी की जो सब सुने, जज ना करे, सलाह ना दे, बस साथ दे, विश्वास करे पर कोई साथ नहीं देता, ये जंग ख़ुद से खुद लड़ने की है। और इसमें कोई सलाह काम नहीं देता। मैंने गीता पढ़ी, कुरान पढा, आध्यात्मिक कई किताबें पढ़ी, ध्यान किया। अंत में विपश्यना गया, वहां जाकर बहुत सुकून मिला, फिर धीरे धीरे ख़ुद को व्यस्त रखने लगा, ये नहीं सोचता कि क्या कर रहा हूं बस एक ही इसका उपाय है बिना सोचे ख़ुद को व्यस्त रखना, जो करो सार्थक, निरर्थक उससे फर्क नहीं पड़ता, बस ख़ुद को व्यस्त रखो, अच्छे डॉक्टर से मिलो, काउंसलिंग कराओ, एक ऐसा शख़्स ज़रूर हो, जिससे दिल खोल कर बातें हों,अपनों से भरपूर प्यार मिले तो ये जंग आराम से जीती जा सकती है। वरना मानसिक रोग से भयंकर कुछ नहीं। मेरे माता पिता ने मेरा साथ नहीं दिया होता, तो, शायद आज मैं लिखने को जिंदा नहीं होता। खुल कर कहिए, आप डिप्रेशन में हैं, निसंकोच क्योंकि ये प्राकृतिक है, और इस बीमारी में ख़ुद पर से ख़ुद का भरोसा उठ जाता है, ज़िंदगी बोझिल लगने लगती है। दुनिया,परिवार इन सब का का मोह ख़त्म हो जाता है।
ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है,एक बार अगर आप डिप्रेशन से निकल गए,फिर,ज़िंदगी की कोई दिक्कत को आराम से झेल लीजिएगा।ज्ञान देना बहुत आसान है,फिल्मों में सुशांत सिंह ने भी दिया है, पर उसे जीवन में उतारना उतना ही कठिन।
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