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इस कल्पना से परे मैं कहां तक जाता, खुद से ही घुलमि

इस कल्पना से परे मैं कहां तक जाता,
खुद से ही घुलमिल बर्बाद फिर मैं हो जाता।

खत्म नहीं होती फिर सोच कि क्षमताएं,
जीवन शैली सुचारू ढंग कहां चला पाता ।

गर्त की गहराई अब ना नापी जाए,
निकलने की चाहा देखो धस फिर जाती।

मिट्टी की कब्रों में घुटन बहुत देखी,
शांत हृदय तल को समझ फिर भी पाता

सच के जीवंत हिस्से को लेस मात्र भी ना समझ पाऊं
कि मैं कटी पतंग बन अपनी मांझे से ही कटता जाऊं

©Naveen Chauhan
  इस कल्पना से परे मैं कहां तक जाता,
खुद से ही घुलमिल बर्बाद फिर मैं हो जाता।

खत्म नहीं होती फिर सोच कि क्षमताएं,
जीवन शैली सुचारू ढंग कहां चला पाता ।

गर्त की गहराई अब ना नापी जाए,
निकलने की चाहा देखो धस फिर जाती।
chauhannaveen0753

Nobita

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इस कल्पना से परे मैं कहां तक जाता, खुद से ही घुलमिल बर्बाद फिर मैं हो जाता। खत्म नहीं होती फिर सोच कि क्षमताएं, जीवन शैली सुचारू ढंग कहां चला पाता । गर्त की गहराई अब ना नापी जाए, निकलने की चाहा देखो धस फिर जाती। #Quotes

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