शोर भी था और खामोशी भी गुड भी था और मिरची भी ख्वाब भी थे और सच्चाई भी बस.. तुम थोडे चुपचाप से थे सडकोंंपर थी भीड बेवजह खाली कोई गली ना थी आँँखे टकराई चुपकेसे लेकिन खुलके मिली ना थी ये भी था और वो भी था बस.. तुम थोडे चुपचाप से थे तुमको देखू या बारिश को या मै भी चूप हो जाऊ? आन्खोसे तारीफे सुनके थोडासा मै इतराऊँँ? उलझन मे थी फसी हुई बस.. तुम थोडे चुपचाप से थे तुम तो बात नाही छेडोगे जान गयी हूँँ इतना मै दिलको अपने ऐसे तैसे समझाऊँँगी कितना मैं खामोशी को सुन लुँँगी और आँँखोसे पढ लुँँगी कभी कभी बस... तुमको छेडूंंगी क्यूँँ इतने चुपचाप से थे ....