आखर से आखर मिला काग़ज़ पर लिख देता हूं। बूंदें फिर अश्कों की बादल सा पी लेता हूं। इल्म नहीं मुझे फनकारी का मैं तो बस बक देता हूं, ना मिले जो वाह महफ़िल में खुद ही पढ़ हंस लेता हूं। कहीं बहारें गुलशन की कहीं कराहें जन-मन की, कहीं प्यासें इबरत की ले अल्फाजों में सिल लेता हूं। पीड़ा हो दर्द ए दिल की चुभन सताती बिरहा की या कहानी हो सैनिक के सीना की बेतरतीब सही मगर चुन लेता हूं। थोड़ा थोड़ा मैं भी अक्सर लिख लिख कर जी लेता हूं, इस अदब महफ़िल बेगाना सही मगर शब्दों के आलिंगन में सबको मैं अपने भर लता हूं। #writer #लिख_लेता_हूं #hindi #nojoto #all #अल्फाज #आखर