युवा के दृढ़ स्वर की परछाई मे, मिथ्या एवं प्रेमी के घायल मन मे, सरवोत्तम की दौर के अकेलेपन में, शिखर पे खड़े अत्तीत के आलिंगाम में भी मैं, और सोचते हो कि किस जन्म का अभिशाप हूँ? 2/3 Continuation.. #philosophy #hindi #hindishayari #hindiwriters