पल...! जो ज्जबते समंदर खजाना ढूढ़ते है, टूटते है बे पनाह गैरो के हाथों फिर रास्ता पूछते है। तक़दीर का सितम बरपा इस कदर ज़माने पर, हो गए तनहा मैफिलो के खजाने पर। माथे पे उसके कभी शिकस्त न आने दी हमने, चलते रहे अग्गारों पर मस्कत न आने दी चहरे पर हमने जो कभी गिला शिकवा शिकायतें रखते थे हम से, आधुरे है पर हिसाब किताब हम भी बरक़रार रखते है। आँधियों से भी पूर्वीयो का मजा लिया करते है नाज़िम, जमाना है मतलबी इसलिए तैयार रहा करते है नाज़िम। #जज्बात #सितम #गिला #बरक़रार #khnazim