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ज़माने की तोहमतें, सुन कर भी मुस्कुरा रहे हैं..!

 ज़माने की तोहमतें,
सुन कर भी मुस्कुरा रहे हैं..!

इसलिए ही वो इसे,
बेशर्मी का रोग बता रहे हैं..!

क्या कहें किधर जाएँ,
ज़माने को खुश करने की ख़ातिर मर जाएँ..!

पुल बाँधेंगे तारीफों के वो भी,
मरने तक जो जिया जलाये जा रहे हैं..!

कर्मों का हिसाब होगा दूजे लोक में,
इस दुनिया में अपनों के द्वारा ही सताये जा रहे हैं..!

उगते सूरज को सलाम और ढलती उम्र को अलविदा,
अपनों की यही अदा बताये जा रहे हैं..!

©SHIVA KANT
  #walkingalone #jamanekitohmate