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रहस्यमयी आवाज रातें ज्यादा अच्छी नही गुजर रही थीं

रहस्यमयी आवाज 
रातें ज्यादा अच्छी नही गुजर रही थीं। अक्सर सोच में डूब रहता,ललाट पर चिंता की लकीरें गहरी हो रही थीं। प्रसन्नता के छद्म आवरण को ओढ़े चेहरा भी मन की असमंजस को नही छुपा पाता था, मुस्कुराने में अक्सर शिकन सी झलक जाती थी। मानो की हृदय के कोने में नकारात्मक आवेश उत्पन्न हो रहा हो जो शून्य संतृप्त होने के लिए छटपटा रहा हो। 
एक आवाज़, जो धुंधली सी सुनाई देती थी, आज साफ़ लग रही थी। 
दरसअल वो आवाज़ मेरे चित्त से आ रही पुकार थी जिसे मन की कुढ़न और असंतोष दबा दिया करते, परन्तु आज वो प्रबल थी। उस प्रबल ओंकार ध्वनि ने शरीर को थर्रा कर रख दिया।
मैं खुद में ऊर्जा महसूस कर पा रहा था, ध्वनि के तेज से कुढ़न,असंतोष और बुराइयां मिट चुकी थी थीं। चित्त शांत हुआ और गहरी नींद आ गयी।
सुबह जब चक्षुओं ने सूर्य की रश्मि को चखा और नींद टूटी तो ऐसा लगा कि शरीर मे नव प्राण भर दिए हों। मुझे एहसास हुआ कि वो आवाज मेरे मन की आवाज थी जो अरसे से दबी थी, मैंने प्रण लिया कि अबसे कभी भी मन की आवाज को दबने नही दूंगा। #रहस्यमयीआवाज़ कभी कभी ऐसा होता है कि हम अंतर्मन की आवाज को दबाये रहते हैं जिससे कि मन की ऊर्जा का छरण होता चला जाता है, और एक दिन एहसास होता है कि अब पहले जैसा हौसला नही रहा।
रहस्यमयी आवाज 
रातें ज्यादा अच्छी नही गुजर रही थीं। अक्सर सोच में डूब रहता,ललाट पर चिंता की लकीरें गहरी हो रही थीं। प्रसन्नता के छद्म आवरण को ओढ़े चेहरा भी मन की असमंजस को नही छुपा पाता था, मुस्कुराने में अक्सर शिकन सी झलक जाती थी। मानो की हृदय के कोने में नकारात्मक आवेश उत्पन्न हो रहा हो जो शून्य संतृप्त होने के लिए छटपटा रहा हो। 
एक आवाज़, जो धुंधली सी सुनाई देती थी, आज साफ़ लग रही थी। 
दरसअल वो आवाज़ मेरे चित्त से आ रही पुकार थी जिसे मन की कुढ़न और असंतोष दबा दिया करते, परन्तु आज वो प्रबल थी। उस प्रबल ओंकार ध्वनि ने शरीर को थर्रा कर रख दिया।
मैं खुद में ऊर्जा महसूस कर पा रहा था, ध्वनि के तेज से कुढ़न,असंतोष और बुराइयां मिट चुकी थी थीं। चित्त शांत हुआ और गहरी नींद आ गयी।
सुबह जब चक्षुओं ने सूर्य की रश्मि को चखा और नींद टूटी तो ऐसा लगा कि शरीर मे नव प्राण भर दिए हों। मुझे एहसास हुआ कि वो आवाज मेरे मन की आवाज थी जो अरसे से दबी थी, मैंने प्रण लिया कि अबसे कभी भी मन की आवाज को दबने नही दूंगा। #रहस्यमयीआवाज़ कभी कभी ऐसा होता है कि हम अंतर्मन की आवाज को दबाये रहते हैं जिससे कि मन की ऊर्जा का छरण होता चला जाता है, और एक दिन एहसास होता है कि अब पहले जैसा हौसला नही रहा।