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रातें गुज़रती हैं यूं उम्मीद-ए-सहर में, आई सुबह तो

रातें गुज़रती हैं यूं उम्मीद-ए-सहर में,
आई सुबह तो रात के सपने चले गए......

©Harshvardhan Tiwari
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