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न समझ कायनात को चलाने चला है, अपनी हतेली के लकी

न समझ कायनात को  चलाने चला है, 
अपनी  हतेली के लकीरों पर.... 
भूल गया वो  इन खेल तमाशों मे
डोर खीचने  वाला जो बैठा  है उपर
पल भी की रफतार है ये नादाँ.!
सब खतम होजनी है थम जाने पर... 
क्या गुरूर करें इस जोश- ए-जवानी पर 
फकीरां जब जाना ही हैखाली हात उपर..!!!

©back bench 
  नासमझ
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नासमझ #Thoughts

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