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मुलाक़ात ये दूरियाँ मन को कचोटने लगती हैं तन मन सब

मुलाक़ात  ये दूरियाँ मन को कचोटने लगती हैं
तन मन सब तुम्हारी यादों की आगोश में
तुम्हें ही ढूँढा करता है..
मालूम ही नहीं होता मुझे की
तुम कहीं खोये हो या मैं..
ज्यादातर वक़्त मैं अपनी डायरी में तुम्हें
लिखा करती हूँ फिर पढ़ा करती हूँ..
मैं जैसे तुम्हारी यादों की गोद में सोयी हूँ
मुलाक़ात  ये दूरियाँ मन को कचोटने लगती हैं
तन मन सब तुम्हारी यादों की आगोश में
तुम्हें ही ढूँढा करता है..
मालूम ही नहीं होता मुझे की
तुम कहीं खोये हो या मैं..
ज्यादातर वक़्त मैं अपनी डायरी में तुम्हें
लिखा करती हूँ फिर पढ़ा करती हूँ..
मैं जैसे तुम्हारी यादों की गोद में सोयी हूँ
shalinisahu4155

Shalini Sahu

New Creator