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किसी से नफ़रत करते हैं परन्तु मुस्कुराकर गले मिलते

किसी से नफ़रत करते हैं
परन्तु मुस्कुराकर गले मिलते हैं
यह व्यवहारिकता है।
आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं
यहाँ अगर हमें कोई भी रिश्ता
ठीक से निभाना है तो 
व्यवहार कुशल होना आवश्यक है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह
मनसा और वाचा अलग अलग होना है।
जो दोगलापन हैं।
यह दोगलापन या व्यवहारिकता
हमारे शिष्टाचार की अभिन्न अंग है।
धर्म हमें मनसा,वाचा और कर्मणा
एक होने की राय देता है
और हम कहाँ खड़े हैं?

©Andy Mann
  #जरा सोचिए
praveenmann1050

Andy Mann

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#जरा सोचिए #शायरी

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