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काश फिर एक समुद्र मंथन हो, इस जहां के शायद कुछ ग़

काश फिर एक समुद्र मंथन हो, 
इस जहां के शायद कुछ ग़म कम हों।

प्रकट हो उसमें सबके लिए रोजगारी,
क्योंकि आज भी है गरीबी और बेकारी,
शायद फिर हर घर में खुशियां हीं पैदा हों,
काश ‍.....

अबकी अमृत नहीं अन्न का एक कलश हो,
जो दे सके रोटी इस देश के भूखों को,
जिस कलश का भोजन कभी न खत्म हो,
काश ‍.....

उस मंथन में निकले एक ऐसा ब्रह्मास्त्र,
जो मिटा दे जहां से भ्रष्ट लोगों की हस्ती,
शायद फिर उस दिन हम सच में स्वतंत्र हों,
काश ‍.....

Dr. Shalini Saxena

©Dr. Shalini Saxena #SamudraManthan 

#seaside
काश फिर एक समुद्र मंथन हो, 
इस जहां के शायद कुछ ग़म कम हों।

प्रकट हो उसमें सबके लिए रोजगारी,
क्योंकि आज भी है गरीबी और बेकारी,
शायद फिर हर घर में खुशियां हीं पैदा हों,
काश ‍.....

अबकी अमृत नहीं अन्न का एक कलश हो,
जो दे सके रोटी इस देश के भूखों को,
जिस कलश का भोजन कभी न खत्म हो,
काश ‍.....

उस मंथन में निकले एक ऐसा ब्रह्मास्त्र,
जो मिटा दे जहां से भ्रष्ट लोगों की हस्ती,
शायद फिर उस दिन हम सच में स्वतंत्र हों,
काश ‍.....

Dr. Shalini Saxena

©Dr. Shalini Saxena #SamudraManthan 

#seaside