तिनका सूखी घास का छोटा सा टुकड़ा ; तृण कहलाए, तिनका कहलाए । छप्पर जो छाए घर पूरा करे ; अंधेरा छाए जो आँख में पड़े, भले खुद का अस्तित्व नहीं ; पर बना देता है आसरा, हर तिनके में खुशी का अंश ; हर तिनके में परिश्रम का हिस्सा, तिनके से तिनका मिला तो ; बन जाते हैं आशियाने अनेकाकार, कोई लंबा, कोई चौड़ा - गोल, कोई टोकरा, कोई सुराहीदार, इनमें नहीं कोई नौकर, नहीं कोई आया, उड़ने को रहना पड़ता हरदम तत्पर ; जब भी समय आया, पंछी ही नहीं इंसान भी तिनका तिनका जमा करता आया। पंछी तो चहकते रहते, पर चहकना न जाना कोई इंसान। ११६/३६५@२०२१ एक तिनके का भले ही कोई महत्व नहीं होता; पर जब कई तिनके मिल जाते हैं तो एक आशियां, एक दुनिया बस जाती है। #तृण original yreeta-lakra-9mba