मुफ़िलिसी (Mufilisi) Shayari/ Ghazal/ Poem by Qaisar-ul-Jafri (क़ैसर उल जाफ़री) || SOHBAT
उजड़ी हुई बहार का मंज़र भी ले गई
आँधी चली तो गाँव के छप्पर भी ले गई
मुँह देखते खड़े हैं तुम्हारी गली में हम
दुनिया हमारे नाम के पत्थर भी ले गई
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