हृदय से जाओ अब चिक चिक - कच कच, तुम क्यूँ करते हो इतना जी, अजी सुनते नहीं तुम मेरी, कि हमसे और रहा नहीं है,जाता, संग रहना अब दूभर है, होता जाता, तुम्हारे सारे वादे और इरादों का, अब भाँडा है, फूटा जाता, पुराने सारे क़िस्से का लस भी है, अब तो छूटा जाता, नित नये बहाने तुम्हारे पास, बना लिया है मुझको टाइम पास, भुजा-चना,क्या समझ लिए हो,हमको जी, हाँ,सुनलो नहीं बनेगी साथ में, अब अपनी कोई रोटी और कटहल वाली सब्ज़ी जी, समझ गए,अब मत देना फिर कोई जवाब, दूसरी बार फिर हमको होना है आज़ाद, वैसे ज़रूरी तो है,इस प्रसंग का हो कोई उत्तर, पर नहीं समय और पहर है, अब शेष तुम्हारे उजागर हो चुके हैं, सारे वेष वैसे संदेह नहीं है कि,हाँ में ही होगा तुम्हारा उत्तर, क्यूँ, क्यूँ होगा ना जी, स-समय तुम हृदय से मेरे जाओ अब, सुख मुझसे-तुम्हारा और नहीं है,छीना जाता, देखो दूर नदी किनारे साँझ भी है, अब ढलने को जाता, कि हमसे और रहा नहीं है,जाता, कि हमसे और रहा नहीं है,जाता। ✍महफूज़ हृदय