बाँहों में भरने की हसरत लेकर, अपने आशिक़ की ओर जाती है, भूलकर सारी शरम-ओ-हया, उससे हर लम्हा लिपटती जाती है। कमर मटकाकर चलती है या ये जिस्म तराशा गया है फ़ुर्सत से, उसके जिस्म की हरारत समुंदर के पानी को खारा कर जाती है। कभी उठना, कभी बैठना, तो कभी लस्त-पस्त होकर सो जाना, जब ले छरहरे बदन से अंगड़ाई, आशिक़ का सब्र तोड़ जाती है। क्या कह सकता है उनके इश्क़ के चर्चों के बारे में ये सारा जहाँ, टूटकर मिलती है उससे या मिलकर दोनों की प्यास बुझ जाती है। नहीं इस जहाँ में कोई इस लायक, क्यों करे वो फ़िक्र दुनिया की, उसे नहीं मतलब ग़ैरों से, बस वो अक्सर शहवत में डूब जाती है। Rest Zone Poem Competition शीर्षक - लहर (Erotica) #rzpoemomania #rzturns1 #restzone #rzsangeeta_dhun #rzbirthdaymarathon #sangeetapatidar