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अपरिग्रह की अनिवार्य आवश्यकता जिसकी लोभ-भावना जित

अपरिग्रह की अनिवार्य आवश्यकता

जिसकी लोभ-भावना जितनी तीव्र होगी वह उतना ही अधिक संग्रह करने का संकल्प रहेगा। संग्रह कर सकेगा या नहीं यह व्यक्ति की अपनी तथा समाज की तात्कालिक परिस्थितियों पर निर्भर है। यदि वह विवशता अथवा शक्तिहीनता के कारण जितना चाहता है उतना संग्रह नहीं कर सकता, परन्तु उसकी लोभ-भावना बनी रहती है, तो उसे अपरिग्रह नहीं कहा जा सकता। आज जो वस्तु नहीं मिल सकती वह कल मिल सकती है, अतः जो विवशता से वस्तु को छोड़ता है, वह बाधा हट जाने पर संग्रह की तरफ और भी अधिक तीव्रता से बढ़ता है। किन्तु जो साधन होते हुये भी स्वेच्छा से संग्रह की लोभ-भावना का शान्त करके वस्तु का त्याग करता है, वही वास्तविक अपरिग्रही है।

-”नैतिकता की ओर” अपरिग्रह
अपरिग्रह की अनिवार्य आवश्यकता

जिसकी लोभ-भावना जितनी तीव्र होगी वह उतना ही अधिक संग्रह करने का संकल्प रहेगा। संग्रह कर सकेगा या नहीं यह व्यक्ति की अपनी तथा समाज की तात्कालिक परिस्थितियों पर निर्भर है। यदि वह विवशता अथवा शक्तिहीनता के कारण जितना चाहता है उतना संग्रह नहीं कर सकता, परन्तु उसकी लोभ-भावना बनी रहती है, तो उसे अपरिग्रह नहीं कहा जा सकता। आज जो वस्तु नहीं मिल सकती वह कल मिल सकती है, अतः जो विवशता से वस्तु को छोड़ता है, वह बाधा हट जाने पर संग्रह की तरफ और भी अधिक तीव्रता से बढ़ता है। किन्तु जो साधन होते हुये भी स्वेच्छा से संग्रह की लोभ-भावना का शान्त करके वस्तु का त्याग करता है, वही वास्तविक अपरिग्रही है।

-”नैतिकता की ओर” अपरिग्रह
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