मर चुकी मां जाग जाए, खींचता है शाल को। शब्द भी रोने लगे हैं देखकर इस हाल को।। जाग जा बेटा जरा अब, आने को है घर तेरा। आज सुबहा ही तो मां ने था जगाया लाल को।। बेशर्म सत्ता है कहती-अरसे से बीमार थी! हां! गरीबी थी पुरानी छोड़िए पड़ताल को!! बीस घंटे के सफर में एक बोतल बिसलरी। आठ बिस्कुट के सहारे रोकना था काल को।। एड़िया रगड़ी है मैंने, लाश कहती चीख कर। हां! मेरी हत्या हुई है बेच दो इस खाल को।। मार दो गोली, है बेहतर बेबसी की मौत से। मां चली दो कोस लेकर लाल के कंकाल को।। सुन हुकूमत! नीचता का चरम है ये बेरुखी। थू है तुझ पर खा गया तू देश के कई परिवार को।। एक भाषण और देगा, त्याग और बलिदान पर। दो मरे या दो सौ मरे, दर्द क्या घड़ियाल को।। #प्रमिला ललित शुक्ला #veins #Dard #poem #corona #India #SAD #bharat #India #poem #thought "हुकूमत"