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टुकड़ों में बाँट गया मुझे जिसे दिल को जोड़ना था, जवा

टुकड़ों में बाँट गया मुझे जिसे दिल को जोड़ना था,
जवानी के खेल में नहीं जीवन निचोड़ना था..!

कैसे कैसे लोग यहाँ कैसा ये व्यवहार है,
पुरुषार्थ के नाम पे थू है धिक्कार है..!

रोग लगा है जात धर्म का ईमान के नाम पर सब मक्कार हैं,
इंसानियत को मानते नहीं ज़ाहिल जानवर अनपढ़ गँवार हैं..!

क्या सीख मिली जो भीख़ मिली,
पलते उसी के बल छल से ढोंगी दरबार हैं..!

अन्याय का भाई है ये सच में कोई कसाई है,
इनके किरदारों पे दुनिया में इनकी जग हँसायी है..!

क़ैद में ढकना आँखों पे पर्दा रखना सही नहीं,
ये सिर्फ और सिर्फ मौत के हक़दार है..!

©SHIVA KANT
  #Dark #tukde