लाखों चेहरें थे, इस दुनियां की भीड़ में! ढूँढने की चाह ज़रा भी नहीं थी मुझमें और न ही कभी ढूँढा मैंने उस नीड़ को! एक अनजान राह पर, यूं , किसी अनजान नीड़ को! अनजाने में मैं अपना समझ बैठूँगी! आश्चर्य से भर देने वाला, एक वास्तविक एहसास था! कुछ ख़ामिया जरूर थी, उस कोटर के वासी की, न जाने क्यों, मुझे वो खामियां भी खूबियां लगने लगी थी! एक आशा जो, मुझमें हर वक्त बनी रहती है हर वो ख़ामी, जो कभी-कभी थोड़ा सा दुखी कर देती हैं! कभी न कभी उसकी बहुत बड़ी खूबी बन ही जाएगी!!