साहिलों में डूब गया समुद्र में तैरता रहा अपनी ख्वाहिशों में, तुम क्या जानो मेरी मंज़िल मैं खो गया वक़्त की फरमाइशों में। सफर मेरा हुआ ही नहीं कभी मैं तो ढूंढ़ता रहा खुद को राह की परछाइयों में, तुम क्या अब भी सोच रहे हो मैं बैठा हूँ अब तक तेरी रुस्वाइयों में। मिटटी के पुतले है सब यहाँ मैं भी एक दिन टूट कर मिल जाऊंगा इसमें दिल में अपने झांककर द्खों मैं तनहा हूँ आज भी तेरी इन तन्हाइयों में।... " Nishu" khwahishon ki Hera feri #feather