मैं मुहब्बत में मुग्ध मुस्कान में मिठास ढूँढता रहा और पत्थरों में प्यार की प्यास ढूँढता रहा नगर में सफ़र के दौरान। यद्यपि यात्रा की मात्रा कम रही, यद्यपि सुबह की लालिमा तीव्र गति से बनती रही रात की कालिमा, यद्यपि सर्वप्रथम साक्षात्कार में सफल न हुआ किंतु करोलबाग के करीब महावीर के मंदिर के मोखे से मेरा मतलब मारुति की मूर्ति के मुख से निकली ध्वनियों-सुगंधों से दुख से पल भर के लिए मुक्त हुआ जब कविता ने आत्मा को छुआ रमणीय रचना बन कर, हौसला हुआ कि मुझे भी रहना चाहिए तन कर। यही सोच कर केवल कविता से काम चलाता रहा यह काम निशा की गोद में भी जगाता रहा। लोभी लोग लाठियाँ ले गये, लोभी लोग दुख-दर्द दे गये मगर मैं अनुप्रास ढूँढता रहा। मैं पत्थरों में प्यार की प्यास ढूँढता रहा।। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #पत्थरों_में_प्यार_की_प्यास