"कलयुग" ये हर प्रचंड रूप है खंगालता जो धूप है है चाँद भी चराग में और मरघटों की आग में झूलती है जिंदगी यूँ सरफिरों के बाग़ में लगे तो कोई हो प्रकट, निवाला मुँह से ले झपट बचा जो आग में गया, किसी ने फूँक दी लपट ! ये बावलों का कूप है ये हर प्रचंड रूप है खंगालता ये धूप है। यहां पार्थ में भी स्वार्थ है,हर अर्थ का अनर्थ है कुछ लोग हैं हिजाब में और खुरदरे मिजाज में यहा 'खेल', 'खून' ,'राग' है #ये मरघटों की आग है# #DPF #Kavishala #NOJOTO #kalyug